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Thursday, March 8, 2018

हिदायतुल बनात - मुसलमान बच्चियों के लिए दीन की ज़रूरी बातें


हिदायतुल बनात
پاکی ناپاکی اور حیض کے مسائل

بسم الله الرحمن الرحيم

1. बुलूग की बातें:

  1. हर महीने जो आगे की राह से मामूली खून आता है उसको अरबी में हैज़ कहते हैं।
  2. जब किसी लड़की को हैज़ आ गया तो वह शरीअत के एतबार से जवान हो गई।
  3. जवान होने को शरीअत में बालिग़ होना कहते हैं।
  4. रोज़ा, नमाज़ वगैरह शरीअत के सब हुक्म अहकाम उसपर फ़र्ज़ हो गए।
  5. नौ बरस से पहले कोई लड़की बालिग़ नहीं हो सकती अगर उसको खून भी आए तो वह हैज़ नहीं।
  6. अगर किसी लड़की को हैज़ नहीं आया लेकिन उसकी उमर इस्लामी साल के हिसाब से पूरे पन्द्रह बरस की होचुकी है तब भी वह बालिग़ समझी जाएगी और जो हुक्म बालिग़ पर लगाए जाते हैं अब उसपर लगाए जाएंगे।

2. हालते हैज़ के अहकाम:

  1. हैज़ की हालत में नमाज़ पढ़ना और रोज़ा रखना दुरुस्त (सही) नहीं। इतना फर्क है के नमाज़ तो बिल्कुल माफ़ हो जाती है पाक होने यानी हैज़ ख़त्म होने के बाद उसकी क़ज़ा वाजिब नहीं होती लेकिन रोज़ा माफ़ नहीं होता पाक होने के बाद क़ज़ा रखनी पड़ेगी। 
  2. जो लड़की हैज़ की हालत में हो उसको मस्जिद में जाना और कुरान शरीफ पढ़ना और कुरान शरीफ छूना दुरुस्त नहीं। 
  3. अगर कुरान शरीफ जुज़्दान में या रुमाल में लिपटा हो या उसपर कपड़े वगैरह का गिलाफ चढ़ा हो और जिल्द के साथ सिला हुआ न हो बलके अलग हो के उतारे से उतर सके तो इस हाल में कुरान मजीद का छूना और उठाना दुरुस्त है। 
  4. जिस किसी भी चीज़ में कुरान शरीफ की कोई आयत लिखी हो उस को भी छूना इस हालत में दुरुस्त नहीं। लेकिन अगर किसी थैली में, बस्ते में या बरतन वगैरह में रखे हो तो उस थैली, बस्ते या बरतन वगैरह को छूना और उठाना दुरुस्त है। 
  5. क़मीज़ के दामन और दुपट्टे के आँचल से भी कुरान मजीद को पकड़ना और उठाना दुरुस्त नहीं लेकिन अगर बदन से अलग कोई कपड़ा हो जैसे रुमाल वगैरह उस से पकड़ के उठाना जाइज़ है। 
  6. अगर पूरी आयत ना पढ़े बलके आयत का ज़रा सा लफ्ज़ या आधी आयत पढ़े तो दुरुस्त है। 
  7. अगर “अलहम्दु” की पूरी सूरत दुआ की नियत से पढ़े या और दुआएं जो कुरान में आई हैं जैसे “रब्बना” उनको दुआ की नियत से पढ़े कुरान की तिलावत के इरादे से ना पढ़े तो दुरुस्त है। इस में कुछ गुनाह नहीं है। 
  8. दुआ ए क़ुनूत और बाकी सब दुआएं पढ़ना भी दुरुस्त है। 
  9. कलिमा और दरूद शरीफ पढ़ना और खुदा ताआला का नाम लेना इस्तिघफार पढ़ना मना नहीं है ये सब दुरुस्त है। 
  10. मदरसे जाना भी मना नहीं है कुरान शरीफ के सिवा दीगर तमाम किताबें पढ़ना दुरुस्त है। इसलिए इन दिनों मदरसे से ग़ैरहाज़िर हरगिज़ ना रहे।
  11. इस हालत में घरवालों के साथ उठना बैठना और उनके साथ खाना पीना भी मना नहीं है।

3. पाकी का बयान:

  1. जैसे ही हैज़ बंद हो जाए तो गुसल (नहाना) वाजिब यानी ज़रूरी हो जाता है। बगैर नहाए नमाज़ नहीं पड़ सकते और इसी तरह क़ुरान शरीफ की तिलावत भी नहीं कर सकते और उसको छू भी नहीं सकते। 
  2. बिला वजह गुसल करने में देर करना यहाँ तक के कोई फ़र्ज़ नमाज़ छूट जाए बहुत बड़ा गुनाह है।
  3. जिस्म से बहने वाला खून नापाक होता है। बदन और कपड़े पर अगर लग जाए तो उसको धो लेना चाहिए। इसीलिए बदन और कपड़ों को पाक रखने के लिए बेहतर है के इस हालत में सेनेटरी पैड का इस्तेमाल किया जाए। इस्तेमाल के तरीके को घर की किसी बड़ी औरत से समझ लिया जाए या अपनी महिला उस्ताद से पूछ लिया जाए। इसमें शर्माने की ज़रूरत नहीं।
  4. इस हालत में अपने आप को साफ रखने का खास ख़याल रखे। अगर हो सके तो रोज़ नहा लिया करें और रोज़ ही अपनी अंडरवियर भी बदल लिया करें और नहाने के लिए खुशबूदार साबुन इस्तेमाल करें के बदबू बाकी ना रहे।
  5. सेनेटरी पैड को इस्तेमाल के बाद अच्छी तरह लपेट कर किसी मुनासिब जगह फेंक दें। उसे शौचालय में ना बहाएं।

4. गुसल का बयान:

  1. सब से पहले इस बात की नियत यानी इरादा करें के नापाकी को दूर करने के लिए गुसल करती हूँ। 
  2. फिर गट्टों तक दोनों हाथ धोएं। फिर इस्तिंजा (गुप्तांग) की जगह धोएं। फिर बदन पर जहाँ कोई गंदगी लगी हो तो उसे धो लें। फिर अच्छी तरह सुन्नत के मुताबिक वुज़ू करें। फिर बालों को अच्छी तरह धोएं और हर बाल की जड़ तक पानी पहुंचाने की कोशिश करें। फिर सर पर तीन बार पानी बहाएं इसके बाद सारे बदन को पानी से धोएं इस तरह के सारे बदन पर पानी बह जाए। 
  3. खूब अच्छी तरह बदन मलमल कर धोएं के जिस्म के हर हिस्से तक पानी पहुँच जाए बाल बराबर भी कोई हिस्सा सूखा ना रह जाए। 
  4. गुसल में तीन चीज़ें फ़र्ज़ हैं यानी बे उनके गुसल दुरुस्त नहीं होता। 1. खूब मुंह भर कर कुल्ली करना। 2. नाक में पानी डालना जहाँ तक नाक नरम है। 3. सारे बदन पर पानी पहुंचाना। इन तीन के सिवा बाकी सारी बातें सुन्नत हैं के उनके करने से सवाब मिलता है और अगर छूट जाए तो भी गुसल हो जाता है। 
  5. गुसल करते वक़्त क़िबला की तरफ मुंह ना करें और पानी बहुत ज़्यादा ना फेंके और ना बहुत कम ले के अच्छी तरह गुसल ना कर सके और ऐसी जगह गुसल करें के उसको कोई ना देखे और गुसल करते वक़्त बातें भी ना करें।
  6. अगर गुसल के बाद याद आए के फलानी जगह सूखी रह गई थी तो फिर से नहाना वाजिब नहीं बलके जहाँ सूखा रह गया था उसी को धो ले और अगर कुल्ली करना भूल गई हो तो अब कर ले। अगर नाक में पानी ना डाला हो तो अब डाल ले। दोबारा नहाने की ज़रूरत नहीं। 
  7. नथ, बालियां और अंगूठी छल्लों को खूब हिला ले के पानी सुराखों में पहुँच जाए। ऐसा ना हो के पानी ना पहुंचे और गुसल सही ना हो। 
  8. अगर नाखून में आटा लग कर सूख गया या नाखून पॉलिश लगाई हो या ऐसी ही कोई चीज़ बदन पर लगाई हो के उसके नीचे पानी नहीं पहुंचा तो गुसल नहीं हुआ। गुसल से पहले ख़याल करके इन चीज़ों को छुड़ा ले और अगर गुसल के बाद याद आए और देखे तो छुड़ा कर पानी डाल ले। 
  9. हाथों और पैरो में अगर मेहँदी का रंग लगा हो तो गुसल दुरुस्त है। 
  10. हर हफ्ते नहा धोकर नाखून काटना और नाफ से नीचे (गुप्तांग के आस पास का हिस्सा) और बगल के बाल दूर करके बदन को साफ सुथरा करना मुस्तहब यानी सवाब और अच्छी बात है।
  11. यह काम हर हफ्ते ना हो सके तो पन्द्रहवें दिन कर ले। अगर चालीस दिन गुज़र गए और ये सफाई ना की तो गुनाह हुआ।

5. हैज़ का बयान:

  1. हर लड़की की हैज़ की मुद्दत यानी हैज़ शुरू और बंद होने की अवधि (मासिक धर्म) अलग अलग होती है। इसलिए ज़रूरी है के हर लड़की अपने इन मखसूस (विशेष) दिनों का हिसाब रखे।
  2. जिस वक़्त खून देखे उसी वक़्त से हैज़ के दिनों का हिसाब लगाना शुरू कर दे। फिर जिस दिन और जिस वक़्त सेनेटरी पैड पर किसी भी रंग का कोई धब्बा नहीं दिखे बिल्कुल साफ नज़र आए तो अब समझो के हैज़ बंद हो गया है।
  3. कम से कम हैज़ की मुद्दत तीन दिन और तीन रात है जो के 72 घंटे होते हैं। ज्यादा से ज्यादा दस दिन और दस रात है जो के 240 घंटे होते हैं।
  4. किसी को तीन दिन तीन रात (72 घंटे) से कम खून आया तो वह हैज़ नहीं है बलके उसे इस्तिहाज़ा कहते हैं यानी किसी बीमारी वगैरह की वजह से ऐसा हो गया है और अगर दस दिन दस रात (240 घंटे) से ज्यादा खून आया है तो जितने दिन दस से ज्यादा आया है वह भी इस्तिहाज़ा (बीमारी) है।
    मिसाल: किसी लड़की को 5 रमज़ान दोपहर 1 बजे खून आया और 8 रमज़ान दोपहर 12 बजे बंद हो गया तो वह हैज़ नहीं बलके इस्तिहाज़ा है। इसी तरह अगर किसी को 5 रमज़ान दोपहर 1 बजे खून आया और 15 रमज़ान दोपहर 1 बजे के बाद भी जारी रहा तो जितने दिन या वक़्त 15 रमजान 1 बजे के बाद जारी रहे वह सब इस्तिहाज़ा है।
  5. किसी को हमेशा तीन दिन या चार दिन खून आता था फिर किसी महीने में ज्यादा आ गया लेकिन दस दिन से ज्यादा नहीं आया वह सब हैज़ है और अगर दस दिन से भी बढ़ गया तो जितने दिन पहले से आदत के हैं उतना तो हैज़ है बाकी सब इस्तिहाज़ा है।
    मिसाल: किसी को हमेशा तीन दिन हैज़ आने की आदत है लेकिन नौ दिन या दस दिन रात खून आया तो ये सब हैज़ है और अगर दस दिन रात से एक मिनट भी ज्यादा खून आये तो वही तीन दिन हैज़ के हैं और बाकी दिनों का सब इस्तिहाज़ा है।
  6. एक लड़की है जिस को खून आने की कोई आदत स्थिर नहीं है कभी चार दिन खून आता है कभी सात दिन इसी तरह बदलता रहता है कभी दस दिन भी आ जाता है तो ये सब हैज़ है। ऐसी लड़की को अगर कभी दस दिन रात से ज्यादा खून आये तो देखो उस से पहले महीने में कितने दिन हैज़ आया था बस उतने ही दिन हैज़ के और बाकी सब इस्तिहाज़ा है।
  7. दो हैज़ के दरमियान पाक रहने की मुद्दत कम से कम पन्द्रह दिन है और ज्यादा की कोई हद नहीं। सो अगर किसी वजह से किसी को हैज़ आना बंद हो जाए तो जितने महीने तक खून ना आयेगा पाक रहेगी।
  8. किसी को तीन दिन रात खून आया फिर पन्द्रह दिन पाक रही फिर तीन दिन रात खून आया तो तीन दिन पहले के और तीन दिन ये जो पन्द्रह दिन के बाद में, हैज़ के हैं और बीच में पन्द्रह दिन पाकी का ज़माना है।
  9. अगर एक दिन या कई दिन खून आया फिर पन्द्रह दिन से कम पाक रही है उस का कुछ एतबार नहीं बलके यूँ समझेंगे के गोया अव्वल से आखिर तक बराबर खून जारी रहा। सो जितने दिन हैज़ आने की आदत हो उतने दिन तो हैज़ के हैं बाकी सब इस्तिहाज़ा है।
    मिसाल: किसी को हर महीने की पहली और दूसरी और तीसरी तारीख हैज़ आने का मामूल है। फिर किसी महीने में ऐसा हुआ के पहली तारीख खून आया फिर चौदह दिन पाक रही फिर एक दिन खून आया तो ऐसा समझेंगे के सोलह दिन बराबर खून आया। सो इस में से तीन दिन अव्वल के तो हैज़ के हैं और तेरह दिन इस्तिहाज़ा है।
    मिसाल: किसी को हर महीने की चौथी, पाँचवीं, छटी तारीख हैज़ आने की आदत थी तो यही तारीखें हैज़ की हैं और तीन दिन अव्वल के और दस दिन बाद के इस्तिहाज़ा के हैं।
    मिसाल: किसी को हर महीने तीन दिन हैज़ आने की आदत है। फिर किसी महीने में ऐसा हुआ के एक दिन खून आया फिर नौ दिन पाक रही फिर एक दिन खून आया तो ऐसा समझेंगे के ग्यारह दिन बराबर खून आया। सो इस में से आदत के तीन दिन तो हैज़ के हैं और आठ दिन इस्तिहाज़ा है।
    मिसाल: किसी को हर महीने तीन दिन हैज़ आने की आदत है। फिर किसी महीने में ऐसा हुआ के एक दिन खून आया फिर आठ दिन पाक रही फिर एक दिन खून आया तो ऐसा समझेंगे के दस दिन बराबर खून आया। सो इस सूरत में पूरे दस दिन हैज़ के हैं।
  10. हैज़ की मुद्दत के अन्दर लाल, पीला, हरा, खाकी, स्याह जो रंग आये सब हैज़ है।
  11. एक लड़की ने पाकी की हालत में रात को सेनेटरी पैड रख लिया था जब सुबह हुई तो उसपर खून का धब्बा देखा तो जिस वक़्त से धब्बा देखा है उसी वक़्त से हैज़ का हुक्म लगाएं गे।

6. हैज़ के ज़माने में नमाज़ और रोज़े का हुक्म:

  1. हैज़ के ज़माने में नमाज़ तो बिल्कुल माफ़ हो जाती है पाक होने के बाद उसकी क़ज़ा वाजिब नहीं होती लेकिन रोज़ा माफ़ नहीं होता पाक होने के बाद क़ज़ा रखनी पड़ेगी। इसका मतलब ये है के जो रोज़े हैज़ की वजह से छूट गए हैं उनको गिन ले और फिर रमज़ान के बाद उन रोजों की क़ज़ा रख ले। 
  2. अगर फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ते में हैज़ आ गया तो वह नमाज़ भी माफ हो गई। अब उस नमाज़ से हट जाए और अदा ना करे पाक होने के बाद उसकी क़ज़ा नहीं है और अगर नफ्ल या सुन्नत में हैज़ आ गया तो उसकी क़ज़ा पढ़नी पड़ेगी और अगर रोज़े की हालत में हैज़ आया तो वह रोज़ा टूट गया अगरचे इफ्तार से थोड़ी देर पहले ही क्यों ना हो, जब पाक हो तो क़ज़ा रखे। अगर नफ्ल रोज़े में हैज़ आ जाए तो उस की भी क़ज़ा रखे।
  3. किसी को तीन दिन हैज़ आने की आदत है लेकिन किसी महीने ऐसा हुआ के तीन दिन पूरे हो चुके और अभी खून बंद नहीं हुआ तो अभी गुसल ना करे ना नमाज़ पढ़े अगर पूरे दस दिन रात पर या उससे कम में खून बंद हो जाए तो उन सब दिनों की नमाज़ें माफ है। कुछ क़ज़ा ना पढ़ेगी और यूँ कहें गे के आदत बदल गई इसलिए ये सब दिन हैज़ के होंगे और अगर ग्यारहवें दिन भी खून आया तो अब मालूम हुआ के हैज़ के फ़क़त तीन दिन ही थे ये सब इस्तिहाज़ा है। पस ग्यारहवें दिन नहाए और सात दिन की नमाज़ें क़ज़ा पढ़े और अब नमाज़ें ना छोड़े। 
  4. अगर दस दिन से कम हैज़ आया और ऐसे वक़्त खून बंद हुआ के नमाज़ का वक्त बिल्कुल तंग है के जल्दी और फुर्ती से नहाने के बाद बिल्कुल ज़रा सा वक़्त बचेगा जिस में सिर्फ एक दफा अल्लाहु अकबर कह के नियत बांध सकती है इससे ज्यादा कुछ नहीं पढ़ सकती तब भी उस वक़्त की नमाज़ वाजिब हो जाएगी और क़ज़ा पढ़नी पड़ेगी और अगर इससे भी कम वक़्त हो तो नमाज़ माफ है उसकी क़ज़ा पढ़ना वाजिब नहीं। 
  5. अगर पूरे दस दिन रात हैज़ आया और ऐसे वक़्त खून बंद हुआ के बिल्कुल ज़रा सा बस इतना वक़्त है के एक दफा अल्लाहु अकबर कह सकती है इससे ज्यादा कुछ नहीं कह सकती और नहाने की भी गुंजाइश नहीं तो भी नमाज़ वाजिब हो जाती है उस की क़ज़ा पढ़ना चाहिए। 
  6. अगर ऐसे वक़्त खून बंद हुआ के अभी काफी वक़्त नमाज़ का बाकी है तो नहाने में जल्दी ना करें बलके कुछ देर इंतिज़ार करें इतना के नमाज़ का (मुस्तहब) वक़्त ख़तम होने से पहले नहा कर नमाज़ पढ़ लें। 
  7. अगर रमज़ान शरीफ में दिन को पाक हुई तो अब पाक होने के बाद कुछ खाना पीना दुरुस्त नहीं है शाम तक रोज़ेदारों की तरह से रहना वाजिब है लेकिन ये दिन रोज़े में शुमार ना होगा बलके उस की भी क़ज़ा रखनी पड़ेगी। 
  8. अगर रात को पाक हुई (फजर का वक़्त शुरू होने से पहले) और पूरे दस दिन रात हैज़ आया है तो अगर इतनी ज़रा सी रात बाकी हो जिस में एक दफा अल्लाहु अकबर भी ना कह सके तब भी सुबह का रोज़ा वाजिब है। 
  9. और अगर दस दिन से कम हैज़ आया है तो अगर इतनी रात बाकी हो के फुर्ती से गुसल तो कर लेगी लेकिन गुसल के बाद एक दफा भी अल्लाहु अकबर ना कह पाएगी तो भी सुबह का रोज़ा वाजिब है। अगर इतनी रात तो थी लेकिन गुसल नहीं किया तो रोज़ा ना तोड़े बलके रोज़े की नियत कर ले और सुबह को नहा ले और जो इस से भी कम रात हो यानी गुसल भी ना कर सके (और फजर का वक़्त हो जाए) तो सुबह का रोज़ा जाइज़ नहीं है। लेकिन दिन को कुछ खाना पीना भी दुरुस्त नहीं बलके सारा दिन रोज़ेदरों की तरह रहे फिर उसकी क़ज़ा रखे।
  10. शरीअत में रात सूरज डूबने से लेकर फजर की नमाज़ का वक़्त शुरू होने तक के वक़्त को कहते हैं।

7. इस्तिहाज़ा के अहकाम:

  1. इस्तिहाज़ा का हुक्म ऐसा है जैसे किसी के नकसीर फूटे और बंद ना हो। 
  2. इस हालत में नमाज़ भी पढ़े और रमजान के रोज़े भी रखे क़ज़ा ना करना चाहिए और कुरान पाक पढ़ना और छूना भी दुरुस्त है।
  3. अगर कोई नमाज़ छूट जाए तो उसकी क़ज़ा पढ़नी पड़ेगी। 
  4. किसी को तीन दिन खून आने की आदत है फिर किसी महीने ऐसा हुआ के खून दस दिन से भी ज्यादा जारी रहा तो अब मालूम हुआ के सिर्फ आदत के तीन दिन की नमाज़ें माफ हैं, चौथे दिन से लेकर अब तक जितनी नमाज़ें छूटी हैं उनकी क़ज़ा करनी पड़ेगी। 
  5. अगर 72 घंटे से कम खून आया तो गुसल भी वाजिब नहीं। 
  6. अगर खून दस दिन दस रात (240 घंटे) के बाद भी जारी रहे तो वाजिब गुसल करने के बाद नमाज़ें पढ़ना शुरू कर दे और अगर रमजान हो तो रोज़े भी रखना शुरू कर दे अगरचे खून बराबर जारी हो। 
  7. लेकिन इस बात का ख़याल रखा जाए के हर नमाज़ के वक़्त नया वुज़ू किया जाए और एक साफ सुथरा सेनेटरी पैड इस्तेमाल किया जाए। अगर नमाज़ के दरमियान पैड पर खून का धब्बा लग भी गया तब भी नमाज़ अदा हो जाएगी।
नमाज़, रोज़े का हिसाब रखने के लिए बेहतर होगा के हर लड़की अपनी एक डायरी बना ले जिस में हैज़ शुरू और बंद होने की तारीखें दर्ज कर लिया करें। जैसा के नीचे दिए गए टेबल में बताया गया है।


नम्बर
तारीख जब खून देखा
तारीख जब खून बंद हुआ
हैज़ के कुल दिन
पाकी के कुल दिन
1








2








3








4








5








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