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بداية المتعلم: کلمے، دعائیں، وضو، غسل اور نماز

  Click here to read/download (PDF) بسم الله الرحمن الرحيم اسلام کے کلمے کلمۂ طیبہ لَآ إِلٰهَ إِلَّا اللّٰهُ مُحَمَّدٌ رَّسُو ْ لُ ال...

Monday, July 27, 2020

मसाइल ईद उल अज़हा



हज़रत मौलाना असरार अहमद क़समी 
पूर्व इमाम व खतीब चटनी मौहल्ला मस्जिद, मुंबई - 4 
संस्थापक मदरसा अरबिया जामिया राशिदिया, मलकपुर, बुलंदशहर 

हर एक मुसलमान, मर्द और औरत जो मुसाफिर न हो, जिस के पास कुर्बानी के दिनों में कर्ज काट ने के बाद बक़दरे निसाब (87g सोना या 612g चांदी) या 612g चांदी की कीमत का कोई माल हो, रुपए पैसे या कोई और चीज, जो बुनियादी जरूरत से ज्यादा और फालतू हो, उस पर कुर्बानी वाजिब है।

तकबीरे तशरीक: 9 जिल हिज्जह की फ़जर से तकबीरे तशरीक हर उस मुसलमान पर वाजिब है जिस पर पाँच वक्त की नमाज़ फ़र्ज़ है चाहे मर्द हो या औरत, मुकीम (निवासी) हो या मुसाफिर। मर्द बुलंद आवाज से पढ़ें, औरतें आहिस्ता। ये तकबीरें 13 जिल हिज्जह की असर तक पढ़ी जाएं सिर्फ एक बार पढ़ना वाजिब है।

اَللهُ اَكْبَرُ اَللهُ اَكْبَرُ لآ اِلٰهَ اِلَّا اللهُ وَاللهُ اَكْبَرُ اَللهُ اَكْبَرُ وَلِلّٰهِ الْحَمْدُ

कुरबानी का तरीका: (1) पहले नियत करें और (2) ज़बान से بِسْمِ اللهِ اَللهُ اَكْبَر  कह कर जानवर को क़िबला रुख लिटा कर तेज छुरी से ज़िबह करें और ये दुआ पढ़ें:

اِنِّى وَجَّهْتُ وَجْهِىَ لِلَّذِى فَطَرَ السَّمٰوَاتِ وَالْاَرْضَ حَنِيْفًا وَّمَا أَنَا مِنَ الْمُشْرِكِيْنَ، اِنَّ صَلَاتِى وَنُسُكِى وَمَحْيَاىَ وَمَمَاتِى لِلّٰهِ رَبِّ الْعٰلَمِيْنَ لَا شَرِيْكَ لَهُ، 

وَبِذٰلِكَ اُمِرْتُ وَأَنَا مِنَ الْمُسْلِمِيْنَ

इस दुआ के बाद ज़िबह करें और ये दुआ पढ़ें:

اَللّٰهُمَّ تَقَبَّلْهُ مِنِّى كَمَا تَقَبَّلْتَ مِنْ حَبِيْبِكَ مُحَمَّدٍ وَّ خَلِيْلِكَ اِبْرَاهِيْمَ عَلَيْهِمَا الصَّلوٰةُ وَالسَّلَامُ

(अगर किसी और की तरफ से ज़िबह करें तो مِنِّى की जगह مِنْ कह कर उसका नाम लें)

(3) ज़िबह में ये खयाल रहे के हुलकूम – सांस आने जाने की नली जिसे नरखरा कहते हैं कट जाए दूसरे मरी – खाने पीने की नली तीसरे और चौथे वदजैन – यानि हलक से मिली हुई दो रग जो दाएं और बाएं होती है कट जाएं।

(4) बेहतर ये है के जिस तरह ज़िबह करने वाला بسْمِ اللهِ اَللهُ اَكْبَرُ कहे उस तरह जानवर को पकड़ने में मदद करने वाला भी कहे लेकिन अगर मदद करने वाले ने नहीं कहा तो भी ज़िबह दुरुस्त है।

मसाइल कुरबानी: (1) ऊंट पाँच साल, बैल, भैंस, गाय दो साल, बकरी बकरा एक साल (2) ऊंट, गाय, बैल, भैंस में सात हिस्से हो सकते हैं। मगर ज़िबह से पहले पहले सात हिस्से या सात आदमी शरीक हो जाएं। ज़िबह के बाद खरीद बेंच और शिरकत मना  है (3) कुर्बानी में अगर सात साझी हो तो वज़न से गोश्त तकसीम करें और अगर एक ही घराना है तो मिल कर खालें लेकिन शर्त ये है के किसी को एतराज न हो (4) दूसरे शख्स की तरफ से बग़ैर उस की इजाजत के कुर्बानी दुरुस्त नहीं (5) कुर्बानी में अक़ीक़ा की नियत दुरुस्त है (6) खस्सी जानवर अफजल और सुन्नत है (7) गर्भवती जानवर की कुर्बानी जाइज़ है मगर वह जो जन्म देने के करीब हो उस की मकरूह है (8) अगर बच्चा जिंदा पेट से निकला उसका खाना भी हलाल मगर उसे भी ज़िबह कर लिया जाए (9) जानवर हर ऐब से पाक हो वरना कुर्बानी नहीं होगी (10) जिस बकरे के कान पैदाइशी छोटे हो कुर्बानी दुरुस्त है (11) जिस जानवर के लोहे का दाग़ लगा हो उस की कुर्बानी भी दुरुस्त है (12) बकरी का वह बच्चा जो किसी हराम जानवर का दूध पीकर परवरिश पाया हो उस की कुर्बानी भी इस तरह दुरुस्त है के दो चार दिन उस को बांध कर रखा जाए (13) कुर्बानी का जानवर ऐबदार हो तो दूसरा बदलकर कर दे और अगर गरीब हो तो वही ऐबदार कर दे (14) किसी के नाम पर छोड़ा हुआ जानवर पकड़ कर या खरीद कर कुर्बानी करना दुरुस्त नहीं (15) कुर्बानी हुज़ूर की तरफ से भी करना न सिर्फ जाइज़ है बलके अफजल है (16) मुरदों की तरफ से कुर्बानी करना मसनुन है (17) मय्यत ने अगर कुर्बानी की वसीयत की है तो उस की तरफ से कुर्बानी की जाए मगर उस का तमाम गोश्त सदका कर दिया जाए सिर्फ गरीब और ज़रूरतमन्द खा सकते हैं (18) और अगर बिला वसीयत मय्यत की तरफ से क़ुरबानी करे तो सब लोग खा सकते हैं (19) क़ुरबानी के गोश्त में तीन हिस्से करना बेहतर है एक हिस्सा खुद खाए दूसरा दोस्तों और रिश्तेदारों को दे तीसरा गरीब मिस्कीन को दे और अगर तमाम का तमाम खुद ही खा ले तो ये भी दुरुस्त (20) खादिम, इमाम, कसाई अगर योग्य (ज़रूरतमन्द) हों तो खाल दे कर ज़िबह की मजदूरी/वेतन भी दे। मजदूरी में खाल देने से कुर्बानी अधूरी होगी (21) क़ुरबानी के जानवर की रस्सी, ज़ंजीर, घुंघरू सब कुछ सदका कर दे (22) क़ुरबानी नमाज़ ईद के बाद की जाए मगर गाँव देहात जहां ईद की नमाज़ न होती हो पहले भी दुरुस्त है (23) जिस शख्स ने बावजूद साहिबे निसाब (मालदार) होने के क़ुरबानी कभी ही न की हो तो वह शख्स औसतन हिसाब लगा कर हर बरस की क़ुरबानी की कीमत अदा कर दे किसी भी योग्य इदारे (संस्था) में या ज़रूरतमन्द को दे दे।

وآخر دعوانا أن الحمد لله رب العالمين

 

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